प्रभु प्रदत्त वरदान है.... अनायरा
मेरे आने की आहट सुनी मां ने
फूली नहीं समाई,
डुगडुगी पिटी,
और जश्न मनाया सारे घर ने।
खत्म हुआ वनवास,
परदादी नानी का अहसास।
मैं इक्कीसवीं सदी के,
इक्कीसवें साल की कन्या
तोड़ी बेड़ियां तेरह की,
किया मंगलियों का उत्थान।
पाया ,रंग रूप पापा का,
मां के गुणों की खान।
दादी ने गाई बधाइयां,
नानी ने बांटी मिठाइयां।
सुनके मामी दौड़ी आई
सबके लिए लाई बधाई।
मैं शांत व गंभीर,
सुनके भजन, होती तल्लीन।
सबकी गोदी में मैं जाती
दिल न मैं किसी का दुखाती।
सबका ध्यान मैं हूं खींचती,
निश्चल मुस्कान सबको मोहती।
हौले से बोली मामी गुड्डा
मामा चिढ़ाए छोटा बुड्डा ।
मामा ने फिर पैर दबाए
नींद के झौंके मुझको आए।
फूल पत्ती से विशेष प्यार,
उड़ती चिड़िया देखूं बारंबार।
बच्चों का साथ मुझे है भाता,
ना घूमूं शाम को तो रोना आता।
हुआ अन्नप्राशन, मजे हुए मेरे,
दांत भी आया तो स्वाद लिए भतेरे।
हर फल सब्ज़ी मैं हूं खाती,
पर दुद्धू मैं छोड़ न पाती।
कौर लाने में हुई जो देरी
चढ़ जाती है मुझ पे देवी।
चीला,पूड़ी,उपमा इडली,
चटकारे लेती, चटनी हो डली।
सेंव गाठिया और नमकीन,
बीनती अंगुली से छिन्न बिन
दिया मुझे सहजन एक दिन,
टाला हंस के, दांत गिन गिन।
तरबूज़ का रस मैं टपकाती,
मम्मी पहनाती मुझे बरसाती।
आम की गुठली पकड़ न पाती,
जैली बना शरीर मैं सानती।
थोड़ी बदमाशी भी मैं करती,
चॉकलेट अपनी मैं न देती।
यदि खिलाया मुझे जबरन
दांत भींचकर कंपाती हूं तन।
जब करता है कोई मुझे परेशान,
चिल्ला कर करती हूं उसे हैरान।
खुरपेंच में लगता है मन,
खोल देती हूं शर्ट के बटन।
घुटने घुटने सारा घर घूमती,
पकड़ पकड़ के मैं हूं चलती।
रविवार को टी वी देखती,
बालगीत पर झूमती मटकती
ताली से ताली मैं मिलाती,
जब भी होती दादी खाली।
बुआ पापा बोलती हूं अब,
बाकी इशारों से समझाती सब।
खेल खेलती अपनी ही परछाईं से
ढूंढें पापा तो झांकती दरवाजे से।
पोंछा मारना काम प्रिय है मुझे
हर छेद में अंगुली घुसाना है मुझे।
हल्की रोशनी में,खेलती अकेली
सोती बीच में, लोरी मैं सुनती।
सुबह का अलार्म हूं मैं सबका,
सेवा में रहता घर का हर तबका।
भगवान का रूप हूं मैं,ये सारे कहते
मिला घर को वरदान,ये सब मानते।
मनीषा सक्सेना
१३/०७/२०२२